Saturday, June 9, 2007



राजनैतिक स्वार्थों के चलते नक्सल

आतंकवाद नासूरबनता जा रहा है


राजीव कुमार

नक्सलियों द्वारा विहारी मजदूरों का सामूहिक नरसंहार, रानी बोदली का सामूहिक नरसंहार की याद देशवासियों को भूला भी न था कि तब तक 29 मई 2007 को माओवादी आतंकवादियों ने घात लगाकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पुलिसबल के नौ कमांडरों को मार डाला। ये माओवादी हमले को अंजाम देने के पश्चात पुलिस के ढेर सारे असलहों को भी लूटा। सनद रहे कि अब ये माओवादी घात लगाकर हमले में बहुत तेज हो गए हैं। इससे पूर्व ये नक्सली रानीबोदली की घटना को घात लगाकर तब अंजाम दिया था जब पुलिस वाले शराब पीकर गहरी नीद में सो रहे थे। घात-प्रतिघात में तेज ये नक्सली हमले को इतने द्रुत-गति से अंजाम देते हैं कि सामने वाले को संभलने का मौका ही नही मिलता। अब माओवादी आतंकवादियों द्वारा रोज आए दिन एक न एक हत्या को अंजाम देना उनका क्रूरतम शगल बनता जा रहा है।

इस बार के ताजा हमले में राज्य की राजधानी से करीब 400 किमी दूर कुडुर गांव में माओवादियों से लोहा लेने पुलिस बल गए मगर हमले के लिए पहले से ही तैयार बैठे माओवादियों ने इन पुलिस वालों पर करीब 24 बारूदी सुरंगों का विस्फोट किया। साथ में बंदूकों, बमों से हमला कर नौ पुलिसकर्मियों को बर्बरता पूर्वक मार डाला।
आज नासूर बना नक्सलवाद विहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में गहरी जड़े जमा लिया है। आंध्र प्रदेश के तेलांगना क्षेत्र में तो यह समानांत सरकार चलाने का दावा करता है। इसके अतिरिक्त नक्सली अब स्वयं अपनी अदालत लगाकर लोगों को सजाए मौत देने का ऐलान करने लगे हैं। अभी हाल में करीब मई की अंतिम सप्ताह में नक्सलियों ने स्वयं भू अदालत लगाकर पारस गंझू, जारू गंझू, सूकन गंझू और पसला को घर से निकाल कर बुरी तरह से पीटा और बाद में गोलियों से भून डाला। नक्सलियों ने अपनी अदालत में आरोप लगाया कि इन चारों ने अपने समर्थक मुकेश यादव का शव गायब कर दिया, जिसके कारण चारों को मौत की सजा सुनाई जाती है।

आज परिस्थितियां अलग हैं। नक्सलियों ने अपनी रणनीति में भारी बदलाव किया है। 1990 से नक्सलियों ने अपने संगठन को अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित करना शुरू किया था। नक्सली आंदोलन में 2004 में बड़ी तब्दीली तब आई जब दो बड़े संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर यानी एमसीसी और पीपुल्स वार ग्रुप का आपस में विलय हो गया और एक नए संगठन सीपीआई माओवादी का गठन हुआ और इससे इनकी ताकत में दोगुना इजाफा हो गया। इस विलय के बाद नक्सली वारदातों में भारी वृध्दि दर्ज की गई।

इस समय उल्फा करीब रोज आए दिन एक न एक घटनाओं को अंजाम दे रही है। 1979 से हो रहे खूनी हिंसा के तांडव में दोनों पक्षों के 20 हजार से ज्यादा लोग काल के गाल में समा चुके हैं। और इन गठजोड़ों के बाद नक्सलियों का गठजोड़ अब लिट्टे से भी हो चुका है। ये नक्सली लिट्टे को भारत में छिपने का ठिकाना उपलब्ध करा रहे हैं। इसके बदले में लिट्टे उन्हें खतरनाक भारी तबाही वाले हथियार बनाना सिखा रहा है। अभी हाल ही में राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर लिट्टे के समर्थन में नक्सलियों ने पूरी तरह बंद रखा। यह बंद 21 मई 2007 को सरकारी दमन विरोधी दिवस के तौर पर मनाया और इस दिन आंध्र और उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्रों में बंद का भी आह्वान किया। नक्सलियों द्वारा बंद के इस आह्वान से लिट्टे-नक्सल गठजोड़ की आशंका की पूरी तरह पुष्टि हो गई।

सरकार को सारे स्वार्थों को दरकिनारा करते हुए आतंकियों को पूरी शक्ति के साथ सफाया करना चाहिए। ये नक्सली गरीबों के एक तपके को बहला-फुसलाकर उनके हांथो में बंदूक थमा देते हैं। सरकार को ऐसे गरीबों के पेट का ख्याल रखना होगा। नही तो वो दिन दूर नही जब नक्सलवाद के कारण पूरा देश धू-धू करके जल उठेगा।

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