Monday, January 4, 2010

केंद्र सरकार की मज़बूरी

नक्सलियों से निपटने की रणनीति में बदलाव समय की मांग हो सकती है, लेकिन यह शुभ संकेत नहीं कि पश्चिम बंगाल और झारखंड की नई सरकार का रवैया केंद्र से मेल नहीं खा रहा। नक्सलियों से चाहे जैसे निपटा जाए, लेकिन केंद्र और नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में तालमेल होना प्राथमिक आवश्यकता है। यह निराशाजनक है कि नक्सलवाद का मुकाबला करने के तमाम वायदों और तैयारियों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आवश्यक तालमेल कायम होता नजर नहीं आ रहा। नि:संदेह इसका लाभ नक्सली संगठन उठा रहे हैं। उन्होंने न केवल आपस में बेहतर संपर्क स्थापित कर लिए हैं, बल्कि खुद को आधुनिक हथियारों से भी लैस कर लिया है। यही कारण है कि वे पुलिस और सुरक्षा बलों पर हमले करने और जनजीवन को बाधित करने में सक्षम हो गए हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में तो वे जब चाहते हैं तब आसानी से बंद आयोजित करने में सफल हो जाते हैं। यह समझ पाना कठिन है कि जब केंद्र सरकार को उनके खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई नहीं करनी थी तो फिर ऐसा माहौल क्यों बनाया गया कि उनसे दो-दो हाथ किए जाएंगे? यह विस्मृत नहीं किया जा सकता कि नक्सलियों के खिलाफ सैन्य बलों और यहां तक कि वायुसेना के इस्तेमाल को लेकर भी व्यापक चर्चा छिड़ी। अब यह कहा जा रहा है कि नक्सलियों को निशाना बनाने के बजाय उनकी घेरेबंदी की जाएगी और उन तक हथियारों एवं अन्य सामग्री की आपूर्ति को रोका जाएगा। यह जानना कठिन है कि इसके पहले इस पर विचार क्यों नहीं किया गया कि नक्सलियों को हथियारों की आपूर्ति रोकने की जरूरत है? पिछले कुछ वर्षो में नक्सलियों ने जैसे आधुनिक हथियार एवं विस्फोटक पदार्थ जुटा लिए हैं उससे यही प्रतीत होता है कि इसके पहले उनकी सप्लाई लाइन को बाधित करने पर विचार ही नहीं किया गया। देखना यह है कि अब ऐसा करने में सफलता मिलती है या नहीं? निश्चित रूप से केवल इतने से ही नक्सलियों के मनोबल को तोड़ना कठिन है, क्योंकि अब वे इतने अधिक दुस्साहसी हो गए हैं कि हथियारों के लिए पुलिस थानों पर भी हमला करने में संकोच नहीं कर रहे हैं। पुलिस थानों और सुरक्षा बलों के ठिकानों पर नक्सलियों के हमले यह भी बताते हैं कि किस तरह पुलिस को आवश्यक संसाधनों से लैस करने में अनावश्यक देरी की गई। यह निराशाजनक है कि इस मोर्चे पर राज्य सरकारें अभी भी तत्पर नजर नहीं आतीं। यह एक तथ्य है कि पुलिस सुधारों के मामले में राज्य सरकारों का रवैया ढुलमुल ही अधिक है। यह विचित्र है कि राज्य सरकारें पुलिस सुधारों के मामले में न तो उच्चतम न्यायालय के निर्देशों पर अमल करने के लिए आगे बढ़ रही हैं और न ही सुरक्षा विशेषज्ञों के सुझावों पर। आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में रेखांकित किए जा रहे नक्सलवाद का मुकाबला करने के मामले में सबसे अधिक निराशाजनक यह है कि केंद्र और राज्यों के बीच इस पर कोई आम सहमति कायम नहीं हो पा रही है कि नक्सलियों को सही रास्ते पर कैसे लाया जा सकता है?
साभार दैनिक जागरण