Tuesday, June 5, 2007

इतिहास गवाह है हिंसा से किसी भी
जनआंदोलन को नहीं दबाया जा सका
संतोष सिंह
इतिहास गवाह है कि किसी भी विचारधारा का विस्तार जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सका है और न ही हिंसा से किसी जनआंदोलन को दबाया जा सका है। छत्ताीसगढ राज्य के बस्तर क्षेत्र में भी कामोबेश स्थिति आज यही है। नक्सली अपनी विचारधारा को लोगों पर जबरन लादने का प्रयास कर रहे हैं और उनकी बात नहीं मानने पर वे तरहतरह से लोगों को परेशान कर रहे हैं, यहां तक कि नक्सलियों की बात नहीं मानने पर वे निर्दोष ग्रामीणों की हत्या कर देते हैं, फिर भी बस्तर के लोग नक्सलियों के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं, भले ही उन्हें अपनी जान की बाजी ही क्यों न लगानी पडे और इसकी परिणिति सलवा जुडूम अभियान है।
सन् 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग जिले के नक्सलबाडी गांव में शुरु हुआ सशस्त्र विद्रोह नक्सल आंदोलन कहलाया। माओत्सेसुंग़ की विचारधारा से प्रभावित नक्सलवाद के जनक चारु मजूमदार, कनु सान्याल तथा उनके साथी थे। सन् 1972 में आंध्रप्रदेश में एक घोर माओवादी नक्सली नेता कोंडापल्ली सीता रमैया का उदय हुआ। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष पर जोर दिया। अपनी इस अलग विचारधारा को स्थापित करते हुए सीता रमैया ने सशस्त्र अतिवादियों का संगठन पीपुल्स वार गुप (पी.डब्ल्यू.जी.) बनाया। गुरिल्ला युद्ध इनका प्रमुख हथियार बना। वर्तमान में देश के 13 राज्यों के 200 से अधिक जिले नक्सल प्रभावित हैं। नक्सलवाद से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में छत्तीसगढ, झारखंड, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, उडीसा एवं बिहार शामिल हैं। छत्तीसगढ में सर्वप्रथम 1968 में बस्तर में नक्सली पर्चे वितरित होते देखे गए। घने वनों से अच्छादित बस्तर के दण्डकारण्य क्षेत्र को गुरिल्ला लडाई के उपयुक्त पाये जाने पर नक्सलियों ने यहां पैर पसारा। पहले यहां सर्वे का काम हुआ। फिर गांवग़ांव में घूमकर जनसमूह को नाचग़ाना के माध्यम से आकर्षित किया गया। दूसरे चरण में नक्सलियों ने बांस से लेकर तेंदूपत्ता आदि वनोपज की उचित मजदूरी की मांग को लेकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया तथा उनका विश्वास अर्जित करने का प्रयास किया। भोलेभाले ग्रामीणों को गुमराह कर संघम सदस्य के रुप में शामिल कर नक्सली अपनी गतिविधियां बढाते रहे।
प्रारंभ में नक्सलियों की कुछ विचारधारा थी और उनके कुछ सिद्धांत थे, जिससे लोग उनकी ओर आकर्षित भी हुए, लेकिन आज नक्सली अपनी विचारधारा और सिद्धांत से भटक गये हैं। आज उनके पास कोई विचारधारा नहीं है। इसीलिए वे बस्तर के निरीह एवं निर्दोष आदिवासियों की हत्या करने से भी नहीं चूकते हैं। नक्सली इन क्षेत्रों में विकास एवं निर्माण कार्य नहीं होने देते और शासन द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधक बने हुए हैं। इतना ही नहीं बल्कि अब दक्षिण बस्तर दंतेवाडा जिले के बासागुडा, आवापल्ली एवं उसूर आदि क्षेत्रों में आदिवासियों को खेती नहीं करने देकर आदिवासियों के जीने के अधिकार का सीधासीधा हनन कर रहे हैं। नक्सली मानव अधिकारों का सीधासीधा उल्लंघन कर रहे हैं। आये दिन बेगुनाह लोगों को अगवा कर उनकी हत्या कर देते हैं। नक्सलियों ने आदिवासियों की परंपरा एवं संस्कृति को भी क्षति पहुंचाई है। बस्तर के आदिवासियों की विश्व विख्यात प्रथा घोटुल भी अब दम तोडने लगा है। नक्सलियों ने दोरनापाल राहत शिविर में रह रहे ग्रामीणों को गर्मी के दिनों में बंधक बनाकर उन्हें भूखेप्यासे रखा और प्यास बुझाने के लिए पानी के साथ मूत्र मिलाकर दिया। नक्सलियों ने एर्राबोर के राहत शिविर में रात्रि में अचानक आगजनी कर सोते हुए बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यहां तक कि 6 माह की बच्ची को भी आग में झोंकते समय समय उन्हें कोई तरस नहीं आया। नक्सलियों ने विशेष पुलिस अधिकारी 15 वर्षीय बालिका के साथ भी सामूहिक अनाचार कर सम्पूर्ण मानवता को कलंकित किया है।
यदि नक्सलवादी विचारधारा से बस्तर क्षेत्र का विकास होना होता तो आज दुनिया की अनोखी जनक्रांति सलवा जुडूम अभियान नहीं शुरु हुआ होता। नक्सलियों के विकास विरोधी रवैया ने आदिवासियों के मन में उनके प्रति उब पैदा कर दी और इसी उब के चलते सलवा जुडूम जैसे जनआंदोलन का जन्म हुआ। ग्रामीणों का स्वस्फूर्त आंदोलन सलवा जुडूम का पहला जनजागरण अभियान वर्ष 2005 से शुरु हुआ और 4 जून 2006 को इसकी सालगिरह मनाई गई। गोडी भाषा के शब्द सलवा जुडूम का शाब्दिक अर्थ शांति मिशन है। इस अभियान को सभी राजनीतिक दलों के लोग बगैर भेदभाव के समर्थन दे रहे हैं। यह अभियान अब तक 644 गांवों में संपन्न हो चुका है। इस अभियान से बस्तर क्षेत्र के विकास की नई आस जागी है। सलवा जुडूम अभियान को राज्य सरकार द्वारा पूर्ण सहयोग दिया जा रहा है। सलवा जुडूम अभियान का अच्छा प्रभाव आंध्रप्रदेश के वारंगल में भी पहुंचा। वहां के नक्सलियों को घर वापस बुलाने हेतु उनके परिवार के बुर्जुगों ने मार्मिक अपील की है। छत्तीसगढ में नक्सली आतंक से अपने घर बार छोड चुके 45 हजार से अधिक लोगों के लिए राज्य सरकार की ओर से 27 स्थानों पर राहत शिविर खोले गये। इन शिविरों में रहने वाले ग्रामीणों हेतु भोजन एवं चिकित्सा आदि की व्यवस्था की गई। इनके पुनर्वास के लिए 36 करोड रुपये का विशेष पैकेज दिया गया। 8 करोड 81 लाख रुपये की लागत से 6 हजार से अधिक रोजगारमूलक कार्य शुरु कराये गये। ग्रामीण परिवारों को 853 बैल जोडी दी गई। राहत शिविरों में रहने वालों को स्थायी आवास उपलब्ध कराने 24 स्थानों पर 4535 आवास गृहों का निर्माण कराया जा रहा है। 3801 किसानों को 1998 क्वींटल धान बीज नि:शुल्क दी गई और 136 किसानों की 260 एकड जमीन की ट्रेक्टर से नि:शुल्क जुताई की गई।
नक्सलियों के बारे में पहले बात करने से भी लोग डरते थे, लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा सत्ता की बागडोर सम्हालते ही नक्सली समस्या को गंभीरता से लिया गया। उन्होंने केन्द्र सरकार के सामने भी इस समस्या को केवल कानून व्यवस्था की समस्या न मानकर एक राष्ट्रीय समस्या मानने के संबंध में अपना पक्ष बडी मजबूती से रखा। राज्य सरकार द्वारा नक्सली समस्या से निपटने के लिए सुरक्षा के साथ ही विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सरगुजा एवं उत्तार क्षेत्र तथा बस्तर और दक्षिण क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरणों की स्थापना कर इनके माध्यम से जनप्रतिनिधियों के सुझावों के अनुरुप करोडों रुपयों के निर्माण कार्य कराये जा रहे हैं। आत्म समर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए राज्य सरकार द्वारा आकर्षक पुनर्वास पैकेज घोषित किये गये हैं। छत्तीसगढ में इनामी नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए आंध्रप्रदेश की तर्ज पर आत्म समर्पण करने पर उनकी गिरफ्तारी के लिए घोषित इनाम भी उन्हें दिये जाने पर विचार किया जा रहा है। नक्सली घटना में मृत्यु होने पर प्रभावित परिवार के आश्रित को एक लाख रुपये की राहत, प्रत्येक मृत के परिवार के एक सदस्य को शासकीय नौकरी, हाऊसिंग बोर्ड की ओर से एक लाख रुपये तक के मकान, घायल व्यक्ति (असमर्थता) को 50 हजार रुपये, गंभीर रुप से घायल को 10 हजार रुपये, कच्चे मकान के नुकसान पर 10 हजार रुपये, पक्के मकान के नुकसान पर 20 हजार रुपये, चल संपत्ति (अनाज, कपडा, घरेलू सामान) के नुकसान पर 5 हजार रुपये, आजीविका के साधन (बैलगाडी, नाव) के नुकसान पर 10 हजार रुपये और जीप, ट्रेक्टर के नुकसान पर 25 हजार रुपये राहत राशि दी जाती है। अब तक 268 शहीद ग्रामीणों के परिवारजनों को 310 लाख रुपये की सहायता प्रदान की गई। इसके साथ ही 296 घायल ग्रामीणों को 37 लाख 83 हजार रुपये, 282 क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 62 लाख 33 हजार रुपये, संपत्तिा हानि के 429 प्रकरणों में 10 लाख 25 हजार रुपये और 924 आत्म समर्पित संघम सदस्यों को 40 लाख 20 हजार रुपये की सहायता दी गई है।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बल तैनात कर पडोसी राज्यों के पुलिस अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर नक्सली उन्मूलन अभियान चलाया जा रहा है। इस नक्सली उन्मूलन अभियान के अच्छे परिणाम आये हैं, जिसमें गढचिरौली डिविजनल कमेटी का सर्वोच्च कमांडर विकास, कुख्यात नक्सली सब जोनल कमांडर रमेश नगेशिया, झारखंड के जोनल कमांडर मानस, दुर्दांत नक्सली जोनल कमांडर नारायण खैरवार सहित अनेक कुख्यात नक्सली मारे गये और गिरफ्तार किये गये। छत्तीसगढ में शुरु किये गये नक्सली उन्मूलन अभियान से प्रभावित होकर निकटवर्ती राज्य महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उडीसा एवं झारखंड में भी यह अभियान चलाया जा रहा है। छत्तीसगढ में नक्सली उन्मूलन अभियान को अच्छी सफलता मिल रही है। वर्ष 2003 में जहां 10 नक्सली मारे गये थे, वहीं 2004 में 13 नक्सली, 2005 में 27 नक्सली और 2006 में अब तक 50 नक्सली मारे गये हैं। नक्सली मुठभेडों में भी बढोत्तारी हुई है। वर्ष 2003 में जहां 81 मुठभेड हुई थी, वहीं 2004 में 162 मुठभेड, 2005 में 198 मुठभेड एवं 2006 में अब तक 263 मुठभेडें हुई है। नक्सलियों की गिरफ्तारी भी बढी है। वर्ष 2003 में जहां 12 नक्सली गिरफ्तार किये गये थे, वहीं 2004 में 50 नक्सली, 2005 में 128 नक्सली एवं 2006 में अब तक 51 नक्सली गिरफ्तार किये गये हैं । साथ ही 2003 में 93 संघम सदस्य गिरफ्तार किये गये थे, वहीं 2004 में 411 संघम सदस्य, वर्ष 2005 में 395 एवं 2006 में अब तक 168 संघम सदस्य गिरफ्तार किये गये हैं। आत्म समर्पण करने वाले नक्सलियों और संघम सदस्यों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। वर्ष 2003 में जहां 37 नक्सली संघम सदस्यों ने आत्म समर्पण किया था, वहीं वर्ष 2005 में 1415 और 2006 में अब तक 1261 नक्सली एवं संघम सदस्यों ने आत्म समर्पण किया है। इसके अलावा नक्सलियों के कई कैम्प ध्वस्त किये गये और उनके पास से लैण्डमाइन, हथियार, हेण्डग्रेनेड, रॉकेट लांचर, मोर्टार, वायरलेस सेट, मोटर सायकल और दैनिक उपयोगी की सामग्री बरामद की गई।
राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा के साथ ही विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आवागमन के साधन विकसित करने के उद्देश्य से साढे चार करोड रुपये से अधिक लागत की सडकों और पुलपुलियों का निर्माण पुलिस अभिरक्षा में युद्ध स्तर पर कराये जा रहे हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों के भय के चलते टेंडर भरने के लिए ठेकेदार सामने नहीं आ रहे थे। इस समस्या की ओर सरकार का ध्यान जाने पर नक्सली क्षेत्र में पीस वर्क पद्धति से कार्य कराने की अनुमति दी गई और कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों से कहा गया कि वे अपने क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर भी विशेष ध्यान देवें तथा जहां जरुरत हो वहां निर्माण कार्य कराने के लिए पुलिस बल भी उपलब्ध करायें। राज्य शासन के इस फैसले से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के निर्माण कार्यों में भी गति आई है।
राज्य सरकार द्वारा नक्सली उन्मूलन अभियान के तहत हथियार लाओ इनाम पाओ अभियान चलाया जा रहा है। हथियार सहित आत्म समर्पण करने वाले नक्सलियों को एल.एम.जी. हेतु 3 लाख रुपये, ए.के. 47 हेतु 2 लाख रुपये, एस.एस.आर. हेतु 1 लाख रुपये, थ्री नॉट थ्री रायफल हेतु 50 हजार रुपये, 12 बोर बंदूक हेतु 20 हजार रुपये दिया जाता है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पदस्थ पुलिस जवानों और सुरक्षा बलों के लिए 10 लाख रुपये का बीमा कराया गया है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अदम्य साहस का परिचय देने वाले जवानों को क्रम पूर्व पदोन्नति भी दी जाती है और इस वर्ष अब तक 104 जवानों को इसका लाभ मिला है।
सुरक्षा बल के जवान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिए रातदिन लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन नक्सली आतंक के विरुद्ध आज वैचारिक क्रांति लाने की जरुरत है। कुछ स्वयं सेवी संगठनों ने जरुर नक्सलियों के आतंक के खिलाफ आवाज उठाई है। छत्तीसगढ के हर नागरिक को चाहिए कि वह नक्सली समस्या को केवल बस्तर के लोगों की समस्या न माने, बल्कि अपनी समस्या मानकर उसके निदान के लिए हर स्तर पर यथा संभव सहयोग करे। इतिहास साक्षी है कि हिंसा से किसी भी जनआंदोलन को नहीं दबाया जा सका है। जलियावाला बाग में कितनी गोलियां चली, लाशों के ढेर लग गये परन्तु स्वतंत्रता आंदोलन को नहीं दबाचा जा सका और अंत में भारत स्वतंत्र हुआ तथा अंग्रेजों को भारत छोडकर जाना पडा। उसी तरह बस्तर के आदिवासियों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ शुरु किया गया सलवा जुडूम अभियान को भी नक्सली हिंसा से नहीं दबाया जा सकता है। नक्सली आतंक से सलवा जुडूम अभियान बंद होने वाला नहीं है और उम्मीद है कि एक न एक दिन बस्तर में जरुर शांति स्थापित होगी तथा नक्सलियों को बस्तर छोडकर जाना पडेगा।

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