Monday, September 1, 2008

इस्लामी आतंकवाद का असली पैरोकार बना सिमी


राजीव कुमार

यूँ तो भारत वर्षों से आतंकवाद का दंश झेलता रहा है, लेकिन पहले यह केवल कश्मीर घाटी तक सीमित था। किन्तु समय बीतने के साथ-साथ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने अपना ध्यान देश के अन्य शहरों में भी देना शुरू किया। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों ने अपनी रणनीति बदलते हुए भारत के अंदर आतंकी समूह बनानी शुरू की और स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया अर्थात सिमी के रूप में उसे एक मजबूत और भरोसेमंद साथी भी मिला। आज हालात यह है कि सिमी अपने दम पर देश भर में आतंकी कार्रवाइयों को बेखौफ होकर अंजाम दे रहा है। सिमी का मानस पुत्र इंडियन मुजाहिदीन इस्लाम के नाम पर अपने कुकृत्यों को जायज ठहराता है।भारत ही नही विश्व भर में आतंकियों का एक ऐसा संगठन है, जो इस्लाम के नाम पर अन्य धर्मावलंबियों की खात्में की बात करता है। इन संगठनों के द्वारा चलाये जा रहे इस्लामिक आतंकवाद ने पूरे दुनिया में तांडव मचा रखा है। इसके आतंक से पूरी दुनिया त्राहि माम-त्राहि माम कर रही है। ये इस्लामिक आतंकवादी कुरान की कुछ आयतों का सहारा लेकर पूरी दुनिया से काफिरों को खत्म कर इस्लामिक राज्य की स्थापना करने का दु:स्वप्न देख रहे हैं। ये आतंकी अपनी आतंककारी, विध्वंसक घटनाआें को अंजाम देने में कुरान के आयतों का हवाला देकर इसे जायज ठहराने से गुरेज नही करते। वैसे आमतौर पर देखा जाता है कि इस्लाम के मानने वाले कट्टर मुसलमान कहीं भी हो वो उस देश के कानून, संविधान, राष्ट्रीय गीत को नही मानते हैं।हिन्दुस्तान में भी मुसलमानों का एक कट्टरपंथी वर्ग जो जिन्ना के मानसिकता का है, वो आतंकियों के इस इस्लामिक जेहाद का समर्थन कर रहा है। और वह पाकिस्तान के खुफिया एजेंसी आईएसआई के हांथों का खिलौना बनने को तैयार हो गया है। कश्मीर का ही उदाहरण लिया जाए तो वहां भारत सरकार ने कितना आर्थिक सहयोग किया है, कितनी सुविधाएं मुहैया कराईं हैं मगर कश्मीर के मुसलमान उस सहयोग को हवा में उड़ा देते हैं। वे सिर्फ पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने और वहां के झंडे फहराने में ही अपनी वफादारी समझते हैं। कश्मीरी मुसलमानों कीे भारत की धर्म निरपेक्षता में जरा सी भी आस्था नही है। वहां की पीडीपी, नेशनल कांग्रेस जैसी सरीखी पार्टियां भी अलगाववादियों के सुर में अपना सुर मिला रही हैं।आज विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम देने वाले आतंकियों व देश में इनका समर्थन करने वाले कट्टरपंथियों के कारण हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में है। वैसे इस देश में लोकतंत्र तभी तक कायम रहेगा जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है। मुसलमानों के बहुसंख्यक होने पर यह अपने धर्मनिरपेक्ष छवि को कायम नही रख पाएगा। दुरर्र्र््भाग्य से कुछ राजनीतिक पार्टियां अपने मुस्लिम परस्ती रणनीति व वोट बैंक के चलते आतंकवाद को और बढ़ाने का काम कर रही हैं। सपा के आका मुलायम सिंह खुलकर सिमी का समर्थन कर रहे हैं। अभी हाल ही में माननीय न्यायधीश श्रीमती गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली पंचाट पीठ ने सरकार पर सिमी पर प्रतिबंध जारी रहने के पक्ष में पर्याप्त सबूत न देने का आरोप लगाते हुए सिमी पर से प्रतिबंध हटा दिया तो लालू यादव, राम विलास पासवान जैसे नेता बड़ी बेशर्मी और बेहयाई से इसका स्वागत किया।जिस राष्ट्र के नेता आतंकवाद जैसी देश को विध्वंस करने वाली घटनाओं का जिसमें हजारों बेगुनाहों की अकाल मौत हो जाती है, का भी पूरी तरह से राजनीतिकरण कर दिये हों, वहां पर आतंकवाद नासूर बनेगा ही। संभव है कि देश को रसातल में जाने में देर नही लगेगी। इतिहास साक्षी है कि यह देश अपने देश के गद्दारों के कारण ही हारा है। आज इतिहास अपने आप को एक बार फिर दुहरा रहा है। भला हो उच्चतम न्यायालय का जिसने अपने विवके का इस्तेमाल करते हुए सिमी पर प्रतिबंध जारी रखा। इस केन्द्र सरकार से पूंछा जाना चाहिए कि जो साक्ष्य व तथ्य वो अब उच्चतम न्यायालय के समक्ष रख रही है वही साक्ष्य व तथ्य उच्च न्यायालय के पंचाट के समक्ष क्यों नही रखा। पूरे देश को यह जानने का अधिकार है कि श्रीमती गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली पंचाट पीठ ने ऐसा आरोप क्यों लगाया कि ''सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाने के पर्याप्त सबूत नही पेश किये''। मगर सच्चाई यही है कि संप्रग की सरकार ने पोटा जैसे कानून को आतंकियों के भलाई के लिए हटाया। आज आतंकवाद का बढ़ना इसी का दुष्परिणाम है।इस देश में आतंकियों का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को इंडिया टुडे में छपे अप्रैल, 2003 के उस साक्षात्कार को जरूर पढ़ना चाहिए जिसमें सिमी के मुखिया सफदर नागौरी ने बड़े बेबाकी से कहा था कि हिन्दुस्तान को सबक सिखाने के लिए आज महमूद गजनवी की जरूरत है। मुस्लिमों के रहने के लिए यह देश तभी मुकम्मल होगा जब यहां इस्लाम का शासन होगा। इतना ही नही सिमी खुलकर अलकायदा व आजाद कश्मीर का समर्थन करता है। सिमी के आका नागौरी के नारको टेस्ट के बयान को सुनें तो पता चलता है कि अलीगढ़ में सिमी की व्यापक गतिविधियां हैं। सिमी अब सिमी के नाम से ही नही बल्किी इंडियन मुजाहिदीन के नाम से भी अपनी गतिविधियों को जारी किये हुए हैं।सिमी का संबंध अरब की राबता कमेटी के छात्र संगठन बामी और इंटरनेशनल इस्लामिक फेडरेशन ऑफ स्टूडेंट से भी है। सिमी के ही गुर्गों ने 2002 में गुप्तचर ब्यूरो के राजन शर्मा का अपहरण कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के हबीब हॉल में ले जाकर बर्बरता पूर्वक वस्त्र विहीन करके पीटा था। 1997 में अलीगढ़ के सिविल लाइन क्षेत्र में सिमी का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था, जिसमें सिमी के कई प्रमुख नेता उपस्थित थे। उन दिनों नागौरी सिमी का राष्ट्रीय महासचिव था। खुफिया सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगा तो इस संगठन के दो फाड़ हो गए। एक गुट हार्ड लाइन था तो दूसरा लिबरल कोर।इतना ही नही सिमी के कार्यकर्ता आतंकवाद का प्रशिक्षण लेने पाकिस्तान-अफगानिस्तान के दौरे पर अक्सर जाते रहते हैं। गुजरात, कर्नाटक बम विस्फोट इसके ताजा उदाहरण हैं। सिमी कानपुर में भयानक दंगा करा चुका है। इसमें सिमी ने कानपुर में कुरान जलाने की झूठी अफवाह फैला दी, इससे कानपुर कई दिनों तक दंगों की आग में जलता रहा। कई बेकसूरों की बलि चढ़ी और अरबों-खरबों की संपत्ति श्वाहा हो गई। सिमी को भारत की धर्म निरपेक्षता फूटी आंखों भी नही सुहाती है। सिमी भारत को एक इस्लामिक मुल्क बनाना चाहता है। इसी के कारण उसका आदर्श अमेरिका का मोस्ट वांटेड ओसामा बिन लादेन व दुनिया में तबाही मचाने वाला तालिबान हैं।यही नही मदरसों में भी सिमी की भारी घुसपैठ है। क्योंकि यहां इस्लाम और कट्टरता की शिक्षा उसके कंटकाकीर्ण मार्ग को और सुगम बना देते हैं। इन मदरसों को चलाने के लिए सिमी को विपुल मात्रा में अरब देशों से धन मिल रहा है। कुछ अर्सों से अरब, सीरिया, ईरान का रूझान मुस्लिम कट्टरपंथी देशों की तरफ हुई है। ये मुस्लिम देश भारत में अपने पक्ष में भारी जनमत बनाना चाहते हैं।विशेषकर अमेरिका विरोधी जेहाद में क्यूबा, ईरान, सीरिया आदि देशों की संदेहास्पद भूमिका से खुफिया एजेंसियों की नींद उड़ा दी है। सिमी के पक्ष में कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं का आना मुस्लिम तुष्टीकरण का भी तुष्टीकरण है। मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए यह गंदा खेल पूर्व में कांग्रेस खेलती थी मगर इस खेल में अब क्षेत्रीय दल भी पारंगत हो गए हैं। यहां तक कि वामदल भी मुस्लिमों को तुष्ट करने में किसी से पीछे नही है। उनके द्वारा पश्चिम बंगाल में सत्ता के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों को समर्थन देना जग जाहिर है। पिछले केरल विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने मुस्लिमों को रिझाने में कोई कोई कोर-कसर नही छोड़ी। राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक के खातिर मुस्लिमों के प्रति पूर्ण समर्पण देश को कहीं का नही छोड़ेगी। क्योंकि जब सिमी जैसे आतंकी संगठनों की तरफदारी खुलकर राजनीति के बाजार में होने लगती है तो देश का हित चाहने वाले लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचना स्वाभाविक है।अभी हाल ही में राजस्थान और कुछ दूसरे प्रदेशों में जेहादी घटनाओं को अंजाम देने वाले लश्कर और सिमी मोर्चे के एक संगठन ने एक घोषणा पत्र निकाला। इस घोषणा पत्र में चंद पंक्तियों को पढ़ने के बाद सब कुछ स्पष्ट हो जाता है कि वे हिन्दुओं के प्रति कितनी घृणा रखते हैं, उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं - ''हिन्दुओं के खिलाफ जेहाद करना अल्लाह की इजाजत है। हिन्दू व कुछ अन्य हमारे विरोधी हैं। इसलिए उनके विरूध्द ज़ेहाद हमारी मजहबी अनुमति है। अगर हम लड़ते-लड़ते खत्म हो जाते हैं तो जन्नत में हमारे लिए काफी स्थान है।''इस घोषणा पत्र में और भी विष-वमन किया गया है-''हिन्दुओं को अपने 33 करोंड़ नंगे और गंदे देवताओं को मानने की गलती समझ लेना चाहिए। ये सारे हिन्दू मिलकर भी हमारे हांथों से कटती हुई गर्दनों की रक्षा नही कर पाएंगे।'* इस घोषणा पत्र में धमकी दी गई है कि ''अगर हिन्दू अपना रवैया नही बदले तो मुहम्मद गोरी और गजनवी फिर आकर इस देश में कत्लेआम करेंगे। हम यह भी दुनिया को दिखला देंगे कि इस धरती पर हिन्दुओं का खून सबसे सस्ता है।'' बाबरी ढांचा जमींदोह होने के बाद सिमी ने देश को गोरी, गजनवी द्वारा रौंदे जाने की याद दिलाई थी।एक ओर सिमी जैसे आतंकवादी संगठनों की आक्रामकता तो दूसरी ओर कांग्रेस की आतंकवाद पर लुंजपुंज, ढीली व नरम रवैया देश में विध्वंसकारी घटनाओं को बढ़ाने में भारी मदद कर रही है। इस देश को पता है कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने माओवादियों के साथ समझौता करके चुनाव जीता था। बाद में उन्हें भारी रियायतें दी गई। इसी प्रकार पूर्वोत्तर के राज्यों में उसने उल्फा के साथ गठजोड़ कर फतह हासिल किया। यह सभी को विदित है कि चुनावों में उल्फा जैसे आतंकी संगठनों की मदद से चुनाव में जीत हासिल करने के बाद उन्हें तमाम तरह के छूट व मदद करने की कांग्रेस की पुरानी चाल रही है। जम्मू-कश्मीर में तो उसकी लंबी फेहरिस्त है। वहां तो कांग्रेस आतंकियों को कबाब और बिरियानी भी खिलाती थी। उनके पकड़े जाने की स्थिति में आतंकवादियों को सुरक्षित रास्ता भी देती थी।भोले-भोले बेगुनाह नागरिकों के खून की कीमत पर वोट बैंक की राजनीति करने का काम उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे अनेंक राज्यों में होता रहता है। कांग्रेस हमेशा इस बात से भय खाती रही कि आतंकवाद को सख्ती से कुचलने पर उसका मुस्लिम वोट-बैंक बिगड़ जाएगा। इससे यही साबित होता है कि कांग्रेस ने मुसलमानों को आतंकवाद का समर्थक मान लिया है। एक प्रकार से उसने आतंकवाद को मुस्लिम वोट बैंक से जोड़कर देश के धर्म निरपेक्ष मुसलमानों के साथ घोर अन्याय का काम किया है। यही वजह है जिसके चलते संसद पर हमला करने का मुख्य आरोपी अफजल गुरू की फांसी अनिश्चित काल के लिए रोक लगा दी गई है। और तो और कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री गुलामनवी आजाद ने यह धमकी दी कि अगर अफजल गुरू को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार फांसी दी गई तो श्रीनगर जलकर खाक हो जाएगा। कांग्रेस ने इसके बाद बड़े बेहयाई से घुटने टेक दिये।हकीकत यह है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में आतंकवाद के मसले पर सबसे नाकाम, नपुंसक और अक्षम सरकार साबित हुई है। कांग्रेस अपने विपक्षी पार्टी को बहुत सफाई से उत्तर देती है कि कारगिल पर हमला, तीन खूंखार आतंकवादियों को कंधार छोड़ना और अक्षरधाम पर हमला क्या था। यानी कि विपक्षी पार्टियों के शासन काल में आतंकवाद की घटनाएं हुई थी इसलिए हमारे शासन काल में ये घटनाएं दुहराई जाएंगी। यह सच्चाई है कि आतंकवाद की घटनाएं राजग सरकार के समय में हुई थी। ये घटनाएं अमेरिका तक में हो गई हैं और अभी हाल में चीन के सिक्यांग प्रांत में भी हुईं है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति न करें। वे एकता का परिचय देते हुए आतंकवाद के नासूर को जड़ से खत्म करें। इस मुद्दे पर राजनीति की जाएगी तो देश खोखला हो जाएगा। आज एक कड़े कानून की सख्त जरूरत है, जिससे आतंकवाद पर लगाम लगाया जा सके।कांग्रेस का कहना है कि पोटा से आतंकवाद पर काबू नही पाया जा सकता। इस कानून के द्वारा किसी एक वर्ग को परेशान किया जा रहा है। मगर कांग्रेस को यह याद रखना चाहिए कि जब एक ही वर्ग आतंकवाद में लिप्त पाया जा रहा है तो क्या हमारे सुरक्षा एजेंसियों को उनसे पूंछतांछ भी करने का हक नही है। उसके लिए भी सबूत दिया जाएगा तब बात हो सकती है। इस संवेदनशील मुद्दे पर अगर कोई दल राजनीति करता है तो यही समझा जाएगा कि वो इस देश का दुश्मन है। आने वाली पीढ़ियां ऐसी राष्ट्रद्रोही पार्टियों को कभी माफ नही करेंगी। मुसलमानों को भी पोटा जैसे सख्त कानून को लागू करवाने के लिए आगे आना चाहिए। आज कोई आतंकवादी घटना होती है तो यदि कोई मुसलमान पकड़ा जाता है तो कुछ मानवाधिकार संगठन झूठ-मूठ का हो-हल्ला मचाते हैं कि बेवजह मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है। जबकि सैकड़ों लोग जब बम विस्फोटों में मारे जाते हैं तो ये मानवाधिकार संगठन सोए रहते हैं। मानों ये मानवाधिकार संगठन न होकर दानवाधिकार संगठन हैं।अभी हाल ही में यह निर्णायक प्रमाण मिले हैं कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन तथा उसके मित्र दलों का आतंकवाद के प्रति बिल्कुल नरम रवैया है, प्रमाण यह है कि कांग्रेस पार्टी के राम नरेश यादव, बसपा के अकबर अहमद डंपी और समाजवादी पार्टी के अबू आजमी ने मुफ्ती अबू बशीर के आजमगढ़ गांव का दौरा किया था। इसके अतिरिक्त दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैय्यद बुखारी ने भी मुफ्ती अबू बशीर के गांव का दौरा किया था- वो बशीर जो सिमी का मास्टर माइंड है तथा जिसे अहमदाबाद के धमाकों में लिप्त पाये जाने के कारण गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया था। सनद रहे कि इन धमाकों में 55 बेगुनाह लोग मारे गए थे और करीब 150 घायल हो गए थे।जहां पूरे देश में गुजरात पुलिस द्वारा मुफ्ती अबू बशीर तथा अन्य नौ लोगों की इन धमाकों तथा देश के अन्य राज्यों में धमाके में लिप्त होने पर त्वरित गिरफ्तारियां होने तथा मामले का शीघ्रताशीघ्र खुलासा करने के लिए हर जगह प्रसंशा हो रही है वहीं कांग्रेस, सपा, बसपा और कांग्रेस के नेताओं ने आतंक के इन दोषियों के विरूध्द साक्ष्य की परवाह किये बिना उनके गांव का दौरा किया। इन राजनैतिक दलों के कुत्सित इरादे तब प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं, जब वे आतंक के विरोध में की जाने वाली किसी भी ठोस कार्रवाई को किसी संप्रदाय विशेष के विरूध्द कार्रवाई बताकर उनकी निंदा करते हैं।गृहमंत्री हकीकत जानने से इंकार करते हैं और इस्लामी आतंकवादियों को गुमराह किये गए बच्चे बताते हैं। इससे बड़ा तुष्टीकरण और क्या हो सकता है। सपा, बसपा, लोजपा और कांग्रेस द्वारा आतंकवादियों के साथ हमदर्दी का प्रत्यक्ष प्रदर्शन आतंकवाद को समर्थन देने के समान है। पूरे देश की जनता को चाहिए कि आतंक का समर्थन करने वाले इन नेताओं का चुनाव के समय बहिष्कार किया जाए। वर्ना इस देश का भविष्य ही विध्वंस हो जाएगा। जनता को चाहिए कि ऐसे नेताओं का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरें। तभी आतंकवाद पर लगाम लग सकता है। क्योंकि राजनीतिक नेता जनता की सहनशीलता को उसकी कमजोरी समझ रहे हैं।